संचार साथी और चक्षु: भारतीय दूरसंचार परिदृश्य में नागरिक सुरक्षा

1. डिजिटल भारत में साइबर सुरक्षा की अनिवार्यता

इक्कीसवीं सदी के तीसरे दशक में भारत की डिजिटल यात्रा वैश्विक पटल पर एक अद्वितीय उदाहरण बनकर उभरी है। लगभग 1.2 अरब मोबाइल ग्राहकों और दुनिया के सबसे सस्ते डेटा पैकेजों के साथ, भारत एक ‘डेटा-समृद्ध’ राष्ट्र में परिवर्तित हो चुका है। ‘जैम ट्रिनिटी’ (जन-धन, आधार, मोबाइल) के माध्यम से शासन और वित्तीय सेवाओं का लोकतंत्रीकरण हुआ है, जिससे अंतिम छोर पर खड़े व्यक्ति तक सेवाएं पहुंची हैं। हालांकि, इस तकनीकी क्रांति के समानांतर एक जटिल और भयावह चुनौती भी उभरी है—साइबर धोखाधड़ी और डिजिटल पहचान की चोरी। जामताड़ा और मेवात जैसे क्षेत्रों से संचालित होने वाले संगठित साइबर अपराध सिंडिकेट ने न केवल वित्तीय नुकसान पहुँचाया है, बल्कि डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र में आम नागरिकों के विश्वास को भी चोट पहुँचाई है।

दूरसंचार विभाग (DoT), संचार मंत्रालय द्वारा शुरू की गई ‘संचार साथी’ (Sanchar Saathi) पहल इस पृष्ठभूमि में एक रणनीतिक हस्तक्षेप है। यह केवल एक पोर्टल नहीं, बल्कि एक एकीकृत डिजिटल सुरक्षा ग्रिड है जो कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और मशीन लर्निंग (ML) का उपयोग करके नागरिकों को सशक्त बनाता है। इसका उद्देश्य उपयोगकर्ता की सुरक्षा को सुदृढ़ करना, मोबाइल उपकरणों की चोरी को हतोत्साहित करना और पहचान की चोरी (Identity Theft) को रोकना है। मई 2023 में इसके लॉन्च के बाद से, और विशेष रूप से जनवरी 2025 में मोबाइल ऐप के विस्तार के साथ, इसने डिजिटल सुरक्षा के प्रति सरकारी दृष्टिकोण में एक बड़ा बदलाव चिह्नित किया है ।

यह रिपोर्ट संचार साथी पोर्टल और इसके प्रमुख घटकों—विशेष रूप से ‘चक्षु’ (Chakshu), ‘सीईआईआर’ (CEIR), और ‘टेफकॉप’ (TAFCOP)—का एक विस्तृत, तकनीकी और प्रक्रियात्मक विश्लेषण प्रस्तुत करती है। हम इन उपकरणों की कार्यप्रणाली, इसके पीछे की नीतिगत सोच, तकनीकी वास्तुकला, और इससे जुड़े सामाजिक-राजनैतिक विमर्श का गहराई से अध्ययन करेंगे।

2. संचार साथी: एकीकृत सुरक्षा वास्तुकला का अवलोकन

संचार साथी को सी-डॉट (Centre for Development of Telematics – C-DOT) द्वारा विकसित किया गया है, जो भारत सरकार का दूरसंचार प्रौद्योगिकी विकास केंद्र है। यह पोर्टल अलग-अलग काम करने वाली कई प्रणालियों को एक छत के नीचे लाता है। इसके केंद्र में डेटा शेयरिंग और इंटरऑपरेबिलिटी (Interoperability) का सिद्धांत है, जहां दूरसंचार सेवा प्रदाताओं (TSPs), कानून प्रवर्तन एजेंसियों (LEAs), और आम नागरिकों के बीच जानकारी का निर्बाध प्रवाह होता है ।

2.1 उद्देश्य और दृष्टि

इस पहल के मूल में नागरिक-केंद्रित दृष्टिकोण है। इसका प्राथमिक लक्ष्य मोबाइल ग्राहकों को उनकी डिजिटल पहचान पर नियंत्रण वापस देना है। इसके माध्यम से सरकार तीन प्रमुख मोर्चों पर काम कर रही है:

  1. निवारक सुरक्षा (Preventive Security): नागरिकों को जागरूक करना और उन्हें उपकरण (जैसे KYM) प्रदान करना ताकि वे धोखाधड़ी का शिकार होने से बच सकें।
  2. सक्रिय रिपोर्टिंग (Proactive Reporting): ‘चक्षु’ जैसे उपकरणों के माध्यम से नागरिकों को संदिग्ध गतिविधियों की रिपोर्ट करने में सक्षम बनाना, इससे पहले कि कोई अपराध घटित हो।
  3. सुधारात्मक कार्रवाई (Corrective Action): सीईआईआर और टेफकॉप के माध्यम से चोरी हुए उपकरणों को ब्लॉक करना और फर्जी कनेक्शनों को काटना ।

2.2 तकनीकी आधार और एआई का एकीकरण

संचार साथी के बैकएंड में ‘एस्ट्र’ (ASTR – AI and Facial Recognition powered Solution for Telecom SIM Subscriber Verification) नामक एक उन्नत एआई एल्गोरिदम काम करता है। यह प्रणाली ग्राहक अधिग्रहण फॉर्म (CAF) में दी गई तस्वीरों और दस्तावेजों का विश्लेषण करती है। यह ‘कनवोल्यूशनल न्यूरल नेटवर्क’ (CNN) का उपयोग करके उन चेहरों को पहचानती है जो अलग-अलग नामों से कई सिम कार्डों पर दिखाई देते हैं। आंकड़ों के अनुसार, इस प्रणाली ने लाखों फर्जी कनेक्शनों की पहचान की है, जो मानवीय निरीक्षण से संभव नहीं था ।

3. चक्षु (Chakshu): संदिग्ध धोखाधड़ी संचार की सक्रिय रिपोर्टिंग

‘चक्षु’ (जिसका अर्थ है ‘आंख’) संचार साथी पारिस्थितिकी तंत्र का सबसे नवीनतम और महत्वपूर्ण घटक है। इसे विशेष रूप से संदिग्ध धोखाधड़ी संचार (Suspected Fraud Communication) की रिपोर्टिंग के लिए डिज़ाइन किया गया है। यह एक ‘क्राउडसोर्सिंग’ (Crowdsourcing) मॉडल पर काम करता है, जहां हर नागरिक एक निगरानी प्रहरी की भूमिका निभाता है।

3.1 चक्षु का दर्शन: प्रतिक्रियात्मक से सक्रिय की ओर

पारंपरिक साइबर अपराध रिपोर्टिंग (जैसे हेल्पलाइन 1930) तब सक्रिय होती है जब वित्तीय नुकसान हो चुका होता है। चक्षु इस प्रतिमान को बदलता है। यह नागरिकों को धोखाधड़ी के प्रयास की रिपोर्ट करने की अनुमति देता है। यदि किसी को लॉटरी का फर्जी संदेश मिलता है या कोई ठग बैंक अधिकारी बनकर कॉल करता है, लेकिन नागरिक सतर्कता के कारण ठगा नहीं जाता, तो पहले वह इस घटना को नजरअंदाज कर देता था। चक्षु इस ‘प्रयास’ डेटा को कैप्चर करता है। जब हजारों लोग ऐसे प्रयासों की रिपोर्ट करते हैं, तो एआई सिस्टम पैटर्न (Patterns) को पहचानता है और उन नंबरों को सक्रिय रूप से ब्लॉक कर सकता है, जिससे भविष्य के पीड़ितों को बचाया जा सकता है ।

3.2 धोखाधड़ी की श्रेणियां और उनका विस्तृत विश्लेषण

चक्षु पोर्टल पर रिपोर्टिंग के लिए धोखाधड़ी को विशिष्ट श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है। एक विशेषज्ञ के रूप में, इन श्रेणियों की बारीकियों को समझना आवश्यक है ताकि सटीक रिपोर्टिंग की जा सके :

तालिका 1: चक्षु पोर्टल पर धोखाधड़ी श्रेणियों का विवरण

श्रेणी (Category)विवरण और कार्यप्रणाली (Modus Operandi)
KYC और बैंकिंग (Bank/Electricity/Gas/Insurance)इसमें ठग पीड़ित को डराते हैं कि उनका केवाईसी (KYC) समाप्त हो रहा है और सेवाएं (बिजली, बैंक खाता) बंद हो जाएंगी। वे एक लिंक भेजते हैं या एक ऐप डाउनलोड करवाते हैं जिससे वे डिवाइस का एक्सेस ले लेते हैं।
प्रतिरूपण (Impersonation – Govt/Official)अपराधी खुद को पुलिस, सीबीआई, नारकोटिक्स ब्यूरो, या ट्राई (TRAI) का अधिकारी बताते हैं। हाल ही में ‘डिजिटल अरेस्ट’ घोटाले इसी श्रेणी में आते हैं, जहां पीड़ित को वीडियो कॉल पर डराया जाता है।
फर्जी कस्टमर केयर (Fake Customer Care)सर्च इंजन ऑप्टिमाइजेशन (SEO) का दुरुपयोग करके ठग अपना फर्जी नंबर गूगल पर बैंक या एयरलाइन के कस्टमर केयर के रूप में डालते हैं। जब ग्राहक कॉल करता है, तो उसे ठगा जाता है।
सेक्सटॉर्शन (Sextortion)पीड़ित को एक अज्ञात वीडियो कॉल आती है, जिसमें एक नग्न महिला होती है। कॉल का स्क्रीनशॉट लेकर पीड़ित को ब्लैकमेल किया जाता है और पैसे मांगे जाते हैं।
रोबो कॉल्स (IVR/Robo Calls)स्वचालित पूर्व-रिकॉर्डेड संदेश जो निवेश या लॉटरी का प्रचार करते हैं। ये अक्सर अंतरराष्ट्रीय नंबरों या वीओआईपी (VoIP) गेटवे के माध्यम से आते हैं।
दुर्भावनापूर्ण लिंक (Malicious Link)ऐसे एसएमएस या व्हाट्सएप संदेश जिनमें एपीके (APK) फाइलें या फिशिंग वेबसाइटों के लिंक होते हैं। इन पर क्लिक करने से मैलवेयर इंस्टॉल हो सकता है।
ऑनलाइन जॉब/लॉटरी (Job/Lottery/Loan)“घर बैठे काम करें” या “बिना दस्तावेज के लोन” जैसे लुभावने ऑफर। ये अक्सर डेटा इकट्ठा करने या अग्रिम शुल्क (Advance Fee) धोखाधड़ी के लिए होते हैं।

3.3 चक्षु पर रिपोर्टिंग की विस्तृत तकनीकी प्रक्रिया

चक्षु पर रिपोर्ट करना एक व्यवस्थित प्रक्रिया है। उपयोगकर्ता को साक्ष्य प्रदान करने की आवश्यकता होती है। नीचे दी गई प्रक्रिया आधिकारिक पोर्टल के यूआई (UI) प्रवाह और अनिवार्य क्षेत्रों पर आधारित है ।

चरण 1: पोर्टल नेविगेशन और माध्यम का चयन

उपयोगकर्ता को sancharsaathi.gov.in पर जाना होता है और “Chakshu” मॉड्यूल का चयन करना होता है। प्रक्रिया शुरू करने पर, सबसे पहले माध्यम (Medium) का चयन करना अनिवार्य (*) है:

  • कॉल (Call)
  • एसएमएस (SMS)
  • व्हाट्सएप (WhatsApp)

चरण 2: संचार का विवरण (मेटाडेटा)

चयनित माध्यम के आधार पर, फॉर्म के क्षेत्र बदलते हैं। सटीकता के लिए निम्नलिखित विवरण अनिवार्य हैं:

  • श्रेणी: (ऊपर तालिका 1 में वर्णित सूची से चयन करें)।
  • साक्ष्य (Screenshot): संदिग्ध संचार (कॉल लॉग, चैट, या एसएमएस) का स्क्रीनशॉट अपलोड करना अनिवार्य है। फ़ाइल का आकार 1MB से कम होना चाहिए। यह जांच एजेंसियों के लिए प्राथमिक सबूत है।
  • संचार स्रोत:
    • कॉल के लिए: प्रेषक का नंबर (10 अंक भारतीय के लिए, या + कोड के साथ अंतरराष्ट्रीय)।
    • एसएमएस के लिए: हेडर (Header) का चयन (जैसे AD-HDFCBK)। यदि हेडर नहीं है, तो ‘Without Header’ चुनें।
    • व्हाट्सएप के लिए: यह निर्दिष्ट करें कि यह ‘WhatsApp Call’ था या ‘WhatsApp Text’।
  • समय-सीमा (Timestamp): घटना की तारीख (पिछले 30 दिनों के भीतर) और समय (HH:MM प्रारूप) दर्ज करना अनिवार्य है। यह नेटवर्क लॉग्स के साथ क्रॉस-वेरिफिकेशन के लिए महत्वपूर्ण है।
  • शिकायत का विवरण (Complaint Details): यह एक मुक्त पाठ क्षेत्र है जहां कम से कम 30 वर्णों (Characters) में घटना का वर्णन करना अनिवार्य है। उदाहरण के लिए: “कॉलर ने दावा किया कि वह मुंबई पुलिस से है और मेरे आधार का दुरुपयोग हुआ है।”

चरण 3: व्यक्तिगत सत्यापन

शिकायतकर्ता की विश्वसनीयता सुनिश्चित करने के लिए, पोर्टल व्यक्तिगत विवरण मांगता है:

  • नाम: पहला और अंतिम नाम (अनिवार्य)।
  • ओटीपी सत्यापन: जिस नंबर पर संदिग्ध कॉल/मैसेज आया, उसे दर्ज करें और ओटीपी के माध्यम से सत्यापित करें। यह सुनिश्चित करता है कि रिपोर्ट वास्तविक पीड़ित द्वारा की जा रही है, न कि किसी बॉट या शरारती तत्व द्वारा।

चरण 4: घोषणा और सबमिशन

अंत में, उपयोगकर्ता को एक घोषणा (Declaration) स्वीकार करनी होती है कि दी गई जानकारी सत्य है। गलत रिपोर्टिंग के लिए उपयोगकर्ता को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। सबमिट करने के बाद, डेटा को विश्लेषण के लिए भेजा जाता है।

3.4 चक्षु रिपोर्टिंग का बैकएंड प्रभाव

जब कोई रिपोर्ट सबमिट होती है, तो यह ‘डिजिटल इंटेलिजेंस प्लेटफॉर्म’ (DIP) में जाती है।

  • पैटर्न विश्लेषण: यदि एक ही नंबर के खिलाफ कम समय में कई शिकायतें आती हैं, तो सिस्टम उसे ‘उच्च जोखिम’ (High Risk) के रूप में फ्लैग करता है।
  • री-वेरिफिकेशन: दूरसंचार विभाग संबंधित ऑपरेटर को उस नंबर के ग्राहक का पुनः सत्यापन (Re-KYC) करने का आदेश देता है।
  • ब्लॉकिंग: यदि सत्यापन विफल रहता है, तो नंबर काट दिया जाता है। इसके अलावा, हैंडसेट का आईएमईआई भी ब्लैकलिस्ट किया जा सकता है, ताकि अपराधी उसी फोन में नया सिम डालकर धोखाधड़ी जारी न रख सके ।

4. सीईआईआर (CEIR): चोरी हुए उपकरणों का तकनीकी नियंत्रण

‘केंद्रीय उपकरण पहचान रजिस्टर’ (Central Equipment Identity Register – CEIR) मोबाइल चोरी के पारिस्थितिकी तंत्र पर सीधा प्रहार है। भारत में मोबाइल चोरी एक बड़ा बाजार है क्योंकि चोरी किए गए फोन आसानी से दूसरे सिम के साथ उपयोग किए जाते थे। सीईआईआर ने इस खामी को तकनीकी रूप से बंद कर दिया है ।

4.1 आईएमईआई और ईआईआर की तकनीकी वास्तुकला

हर मोबाइल फोन (GSM/WCDMA/LTE) में एक अद्वितीय 15-अंकीय पहचान संख्या होती है जिसे आईएमईआई (International Mobile Equipment Identity) कहा जाता है। डुअल सिम फोन में दो आईएमईआई होते हैं।

  • EIR (Equipment Identity Register): प्रत्येक नेटवर्क ऑपरेटर (जैसे Jio, Airtel) का अपना एक डेटाबेस (EIR) होता है जिसमें तीन सूचियाँ होती हैं:
    1. व्हाइट लिस्ट: वैध उपकरण जो नेटवर्क का उपयोग कर सकते हैं।
    2. ब्लैक लिस्ट: चोरी या खोए हुए उपकरण जिन्हें नेटवर्क एक्सेस से वंचित किया गया है।
    3. ग्रे लिस्ट: वे उपकरण जो तकनीकी मानकों को पूरा नहीं करते या निगरानी में हैं।

सीईआईआर की भूमिका इन सभी अलग-अलग ऑपरेटरों के ईआईआर को सिंक्रोनाइज (Synchronize) करना है। जब कोई उपयोगकर्ता सीईआईआर पोर्टल पर आईएमईआई ब्लॉक करता है, तो यह जानकारी 24 घंटे के भीतर भारत के सभी नेटवर्क ऑपरेटरों के ईआईआर में अपडेट हो जाती है। इसका परिणाम यह होता है कि चोरी हुआ फोन किसी भी नेटवर्क पर काम नहीं करता (No Service), भले ही उसमें नया वैध सिम कार्ड डाला जाए ।

4.2 चोरी हुए फोन को ब्लॉक करने की विस्तृत प्रक्रिया

यह प्रक्रिया अत्यधिक सुरक्षित है ताकि कोई दुर्भावनापूर्ण तरीके से किसी दूसरे का फोन ब्लॉक न कर सके। इसमें पुलिस और पहचान दस्तावेजों की आवश्यकता होती है।

तालिका 2: सीईआईआर ब्लॉकिंग प्रक्रिया के चरण और आवश्यकताएं

चरणविवरण और आवश्यकताएंअनिवार्य दस्तावेज/जानकारी
1. पुलिस रिपोर्ट (FIR)चोरी या खोने की घटना की रिपोर्ट नजदीकी थाने में या ऑनलाइन राज्य पुलिस पोर्टल पर करें।एफआईआर की डिजिटल कॉपी (PDF/JPG) और शिकायत संख्या।
2. डुप्लिकेट सिमअपने ऑपरेटर से चोरी हुए नंबर का डुप्लिकेट सिम प्राप्त करें। सीईआईआर पर ओटीपी इसी नंबर पर आएगा।सक्रिय मोबाइल नंबर (ओटीपी के लिए)।
3. पोर्टल अनुरोध (CEIR)sancharsaathi.gov.in > “Block Your Lost/Stolen Mobile” पर जाएं।
4. उपकरण विवरणफोन के तकनीकी विवरण भरें।दोनों आईएमईआई नंबर, ब्रांड, मॉडल, खरीद का चालान (वैकल्पिक)।
5. घटना विवरणचोरी का स्थान और समय।राज्य, जिला, पुलिस स्टेशन का चयन।
6. मालिक का विवरणपहचान सत्यापन।पहचान पत्र (आधार/पैन/ड्राइविंग लाइसेंस) की कॉपी।

प्रक्रिया का विश्लेषण:

उपयोगकर्ता द्वारा अनुरोध सबमिट करने के बाद, एक Request ID जनरेट होती है। यह आईडी महत्वपूर्ण है। सिस्टम पहले पुलिस रिपोर्ट और दस्तावेजों को सत्यापित करता है। एक बार सत्यापित होने के बाद, आईएमईआई को ब्लैकलिस्ट में डाल दिया जाता है। यदि कोई उस फोन को चालू करता है, तो नेटवर्क टॉवर उस डिवाइस से सिग्नल प्राप्त करता है लेकिन सेवा देने से इनकार कर देता है। उसी समय, नेटवर्क ऑपरेटर पुलिस को ‘ट्रेसिंग रिपोर्ट’ भेजता है, जिसमें डिवाइस की लोकेशन और उसमें डाले गए नए सिम की जानकारी होती है। यह पुलिस को फोन बरामद करने में मदद करता है ।

4.3 फोन मिलने पर अनब्लॉक करने की प्रक्रिया

यदि पुलिस फोन ढूंढ लेती है या उपयोगकर्ता को वह वापस मिल जाता है, तो उसे दोबारा उपयोग करने के लिए अनब्लॉक करना आवश्यक है। यह प्रक्रिया भी सीईआईआर पोर्टल से होती है :

  1. पोर्टल पर “Unblock Found Mobile” विकल्प चुनें।
  2. Request ID दर्ज करें (जो ब्लॉक करते समय मिली थी)।
  3. वही मोबाइल नंबर दर्ज करें जो ब्लॉक करते समय उपयोग किया गया था।
  4. अनब्लॉक करने का कारण चुनें (जैसे: “Police Recovered”, “Found by Self”, “Blocked by Mistake”)।
  5. ओटीपी सत्यापन के बाद अनुरोध सबमिट करें। आम तौर पर 24 घंटे के भीतर सभी नेटवर्क पर फोन अनब्लॉक हो जाता है।

4.4 ‘नो योर मोबाइल’ (KYM) और सेकेंड-हैंड बाजार

सीईआईआर का एक उप-उत्पाद KYM (Know Your Mobile) है। यह सेकेंड-हैंड फोन खरीदारों के लिए एक महत्वपूर्ण सुरक्षा कवच है। पुराना फोन खरीदने से पहले, खरीदार को उसकी स्थिति की जांच करनी चाहिए।

  • विधि: KYM <15 digit IMEI> लिखकर 14422 पर एसएमएस भेजें या संचार साथी ऐप का उपयोग करें।
  • परिणाम: यदि रिप्लाई में ‘Blacklisted’, ‘Duplicate’, या ‘Already in Use’ आता है, तो वह फोन चोरी का या क्लोन किया हुआ हो सकता है। ऐसे फोन को खरीदने से बचना चाहिए क्योंकि यह कभी भी ब्लॉक हो सकता है और खरीदार कानूनी पचड़े में फंस सकता है ।

5. टेफकॉप (TAFCOP): फर्जी सिम कनेक्शनों का उन्मूलन

‘टेफकॉप’ (Telecom Analytics for Fraud Management and Consumer Protection) मॉड्यूल पहचान की चोरी (Identity Theft) और फर्जी दस्तावेजों के आधार पर सिम जारी करने की समस्या को संबोधित करता है। भारत में, एक व्यक्ति अपने नाम पर अधिकतम 9 सिम कार्ड रख सकता है (जम्मू और कश्मीर, असम और उत्तर पूर्व राज्यों के लिए यह सीमा 6 है)। साइबर अपराधी अक्सर निर्दोष नागरिकों के आधार दस्तावेजों को लीक करके उनके नाम पर दर्जनों सिम सक्रिय कर लेते हैं और उन्हें अपराध के लिए उपयोग करते हैं ।

5.1 टेफकॉप की कार्यप्रणाली

टेफकॉप नागरिकों को पारदर्शिता प्रदान करता है। यह उपयोगकर्ताओं को उन सभी मोबाइल नंबरों की सूची देखने की अनुमति देता है जो उनके आधार/आईडी से जुड़े हैं।

उपयोगकर्ता गाइड (विस्तृत):

  1. एक्सेस: संचार साथी पोर्टल पर “Know Your Mobile Connections” पर क्लिक करें।
  2. लॉगिन: अपना वर्तमान सक्रिय मोबाइल नंबर दर्ज करें, कैप्चा हल करें और ओटीपी दर्ज करें।
  3. समीक्षा: डैशबोर्ड पर, आपको आपके नाम पर सक्रिय सभी नंबरों की सूची (शुरुआती और अंतिम अंक) दिखाई देगी।
  4. रिपोर्टिंग:
    • यदि कोई नंबर आपका नहीं है, तो चेकबॉक्स चुनें और “This is not my number” विकल्प पर क्लिक करें।
    • यदि नंबर आपका था लेकिन अब उपयोग में नहीं है, तो “Not required” चुनें।
    • “Report” बटन दबाएं।

5.2 रिपोर्टिंग का परिणाम

जब कोई उपयोगकर्ता किसी नंबर को “This is not my number” के रूप में रिपोर्ट करता है, तो यह दूरसंचार ऑपरेटर के लिए एक ‘री-वेरिफिकेशन ट्रिगर’ के रूप में कार्य करता है। ऑपरेटर उस नंबर के वर्तमान उपयोगकर्ता से संपर्क करता है और उसे अपनी पहचान साबित करने के लिए कहता है। यदि वह विफल रहता है, तो सिम को निष्क्रिय (Deactivate) कर दिया जाता है। यह प्रक्रिया न केवल उपयोगकर्ता को कानूनी दायित्व से बचाती है, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा को भी मजबूत करती है ।

6. RICWIN: अंतर्राष्ट्रीय कॉल स्पूफिंग का मुकाबला

हाल के वर्षों में, ‘कॉलर आईडी स्पूफिंग’ एक बड़ी समस्या बन गई है। विदेश में बैठे अपराधी इंटरनेट (VoIP) के माध्यम से कॉल करते हैं, लेकिन प्राप्तकर्ता के फोन पर +91 (भारत का कोड) वाला एक स्थानीय मोबाइल नंबर दिखाई देता है। इससे प्राप्तकर्ता को लगता है कि कॉल भारत से ही आ रही है और वह उत्तर दे देता है। यह राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी खतरा है और वित्तीय धोखाधड़ी का एक प्रमुख माध्यम है।

संचार साथी पर “Report Incoming International Call with Indian Number” (RICWIN) सुविधा नागरिकों को ऐसी घटनाओं की रिपोर्ट करने की अनुमति देती है। जब नागरिक रिपोर्ट करते हैं, तो दूरसंचार विभाग (DoT) और इंटरनेशनल लॉन्ग डिस्टेंस (ILD) ऑपरेटर उन अवैध गेटवे और रूटिंग का पता लगाते हैं जो इन कॉल्स को भारतीय नेटवर्क में प्रवेश करने की अनुमति दे रहे हैं। यह खुफिया जानकारी (Intelligence) अवैध टेलीकॉम सेटअप (जिसे ‘सिम बॉक्स’ धोखाधड़ी भी कहा जाता है) पर कार्रवाई करने में मदद करती है ।

7. नीतिगत परिदृश्य, विवाद और गोपनीयता चिंताएं

संचार साथी जैसी व्यापक निगरानी और सुरक्षा प्रणाली का कार्यान्वयन बिना विवाद के नहीं रहा है। प्रौद्योगिकी और नागरिक स्वतंत्रता के बीच का संतुलन एक बहस का विषय बन गया है।

7.1 अनिवार्य ऐप इंस्टॉलेशन और ‘बिग ब्रदर’ की चिंता

दिसंबर 2024 और जनवरी 2025 में एक बड़ा विवाद तब खड़ा हुआ जब दूरसंचार विभाग ने मोबाइल निर्माताओं को निर्देश दिया कि वे भारत में बेचे जाने वाले सभी नए स्मार्टफ़ोन में ‘संचार साथी’ ऐप को पहले से इंस्टॉल (Pre-install) करें और इसे अनइंस्टॉल न करने योग्य बनाएं। विपक्ष और गोपनीयता कार्यकर्ताओं ने इसे “कठोर” और “असंवैधानिक” करार दिया ।

  • विपक्ष का तर्क: कांग्रेस नेता के.सी. वेणुगोपाल और अन्य ने तर्क दिया कि एक सरकारी ऐप जिसे हटाया नहीं जा सकता, वह नागरिकों की जासूसी का एक उपकरण (Snooping Tool) बन सकता है। चूंकि ऐप को कॉल लॉग, एसएमएस और लोकेशन की अनुमति चाहिए होती है (जो इसकी कार्यक्षमता के लिए आवश्यक है), यह सरकार को हर नागरिक के निजी जीवन में झांकने की शक्ति दे सकता है। इसे निजता के अधिकार (अनुच्छेद 21) पर हमला बताया गया।
  • सरकार का स्पष्टीकरण: भारी आलोचना के बाद, केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया और विभाग के अधिकारियों ने स्पष्ट किया कि हालांकि ऐप प्री-इंस्टॉल हो सकता है, इसका उपयोग और पंजीकरण पूरी तरह से वैकल्पिक है। उपयोगकर्ता चाहे तो इसका उपयोग न करे। सरकार का कहना है कि ऐप का उद्देश्य जासूसी नहीं, बल्कि “साइबर स्वच्छता” और सुरक्षा है। डेटा केवल तब एकत्र किया जाता है जब उपयोगकर्ता स्वयं शिकायत दर्ज करता है ।

7.2 डेटा सुरक्षा और भविष्य की राह

यह विवाद भारत में एक मजबूत और स्वतंत्र डेटा संरक्षण नियामक की अनुपस्थिति को उजागर करता है। हालांकि ‘डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम 2023’ (DPDP Act) पारित हो चुका है, लेकिन इसका कार्यान्वयन अभी भी प्रक्रिया में है। विशेषज्ञों का मानना है कि संचार साथी जैसे शक्तिशाली उपकरणों को जनता का विश्वास बनाए रखने के लिए अत्यधिक पारदर्शिता और न्यायिक निगरानी की आवश्यकता है।

8. निष्कर्ष: एक सतर्क डिजिटल नागरिक का निर्माण

संचार साथी और चक्षु पोर्टल भारत सरकार द्वारा साइबर अपराध के खिलाफ लड़ाई में एक प्रतिमान बदलाव (Paradigm Shift) का प्रतिनिधित्व करते हैं। जहां पहले दृष्टिकोण प्रतिक्रियात्मक (घटना के बाद जांच) था, अब यह निवारक और सक्रिय (घटना से पहले रोकथाम) हो गया है। तकनीकी रूप से, सीईआईआर और टेफकॉप ने चोरी के मोबाइल बाजार और फर्जी सिम अर्थव्यवस्था की रीढ़ तोड़ दी है।

हालांकि, प्रौद्योगिकी की अपनी सीमाएं हैं। साइबर अपराधी लगातार नई तकनीकों (जैसे डीपफेक, एआई वॉयस क्लोनिंग) को अपना रहे हैं। इसलिए, संचार साथी की सफलता केवल इसके एल्गोरिदम पर नहीं, बल्कि नागरिकों की जागरूकता पर निर्भर करती है। जब एक नागरिक संदिग्ध कॉल की रिपोर्ट चक्षु पर करता है, तो वह केवल अपनी मदद नहीं कर रहा होता, बल्कि वह पूरे नेटवर्क को सुरक्षित बनाने के लिए डेटा पॉइंट प्रदान कर रहा होता है।

अंतिम अनुशंसाएं:

एक जिम्मेदार डिजिटल नागरिक के रूप में, पाठकों को निम्नलिखित आदतों को अपनाना चाहिए:

  1. नियमित ऑडिट: हर 3-6 महीने में टेफकॉप पर अपने नाम पर सक्रिय सिम कार्डों की जांच करें।
  2. दस्तावेजीकरण: अपने परिवार के सभी मोबाइलों के आईएमईआई नंबर और बिल सुरक्षित रखें। चोरी होने पर यह पहली आवश्यकता होती है।
  3. सक्रिय रिपोर्टिंग: यदि कोई कॉल या एसएमएस संदिग्ध लगता है, तो उसे केवल ब्लॉक न करें, बल्कि चक्षु पर रिपोर्ट करें। आपकी 2 मिनट की रिपोर्ट किसी अन्य व्यक्ति की जीवन भर की कमाई बचा सकती है।
  4. KYM का प्रयोग: कभी भी बिना आईएमईआई जांचे सेकेंड-हैंड फोन न खरीदें और न ही बेचें।

डिजिटल भारत को सुरक्षित बनाना सरकार और नागरिक का साझा दायित्व है, और संचार साथी इस साझेदारी का तकनीकी मंच है।


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